Disaster Management – Cyclone
Makhanlal Chaturvedi University / BCA / Environmental Science
Disaster Management – Cyclone in Hindi
Disaster Management – Cyclone in Hindi
Formation and Causes of Cyclones in Hindi
साइक्लोन (Cyclone) एक प्रकार का शक्तिशाली चक्रवाती तूफान होता है जो समुद्री क्षेत्रों में बनता है और तटीय इलाकों में भारी तबाही ला सकता है। यह हवा के दबाव (Pressure), नमी (Humidity), और समुद्र के तापमान (Sea Surface Temperature) की विशेष परिस्थितियों में बनता है। जब समुद्र का पानी बहुत ज़्यादा गर्म हो जाता है, यानी लगभग 26°C से अधिक, तब यह सतह से बहुत अधिक वाष्प बनाता है। यही वाष्प बाद में ऊपर जाकर संघनित होता है और गर्मी छोड़ता है, जिससे वायु और अधिक ऊपर उठती है और हवा का दाब कम हो जाता है। यही चक्रवात की शुरुआत होती है।
- साइक्लोन बनने के लिए समुद्र का तापमान 26°C या उससे ज़्यादा होना चाहिए।
- वातावरण में पर्याप्त नमी होनी चाहिए ताकि बादल और बारिश बन सके।
- वातावरण में कम हवा का दबाव होना चाहिए ताकि हवा ऊपर उठे।
- Corolis Effect पृथ्वी की घूमने की गति के कारण हवा को घूमने के लिए प्रेरित करता है जिससे तूफान गोलाकार बनता है।
- Upper atmosphere में हवा का बहाव कम होना चाहिए ताकि साइक्लोन एक जगह केंद्रित रह सके।
साइक्लोन बनने के ये कारण जब एक साथ प्रभाव में आते हैं, तो हवा चारों तरफ से कम दाब वाले क्षेत्र की ओर दौड़ती है और तेज़ रफ्तार से घूमते हुए साइक्लोन का निर्माण करती है। इसका केंद्र जिसे 'Eye of Cyclone' कहा जाता है, अपेक्षाकृत शांत होता है पर इसके चारों ओर तेज़ हवाएँ और बारिश होती है।
Cyclone-Prone Regions and Historical Case Studies in Hindi
भारत में मुख्य रूप से पूर्वी और पश्चिमी समुद्री तट साइक्लोन के प्रभाव में आते हैं। खासकर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर दो ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ साइक्लोन बनते हैं। बंगाल की खाड़ी में बनने वाले साइक्लोन अधिक विनाशकारी होते हैं क्योंकि वहाँ हवा की गति और नमी ज़्यादा होती है।
- पूर्वी तट - ओडिशा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु साइक्लोन से सबसे ज़्यादा प्रभावित रहते हैं।
- पश्चिमी तट - गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा जैसे राज्य भी अरब सागर से आने वाले साइक्लोन से प्रभावित होते हैं।
प्रमुख ऐतिहासिक साइक्लोन:
| साल | साइक्लोन का नाम | प्रभावित राज्य | प्रभाव |
|---|---|---|---|
| 1999 | Super Cyclone | ओडिशा | 10,000 से अधिक मौतें, भारी विनाश |
| 2013 | Phailin | ओडिशा, आंध्र प्रदेश | 10 लाख लोगों की सुरक्षित निकासी, कम हानि |
| 2020 | Amphan | पश्चिम बंगाल | 5000 करोड़ से अधिक की हानि |
भारत सरकार और मौसम विभाग ने समय के साथ बेहतर चेतावनी प्रणाली अपनाई है जिससे हाल के वर्षों में साइक्लोन से होने वाली हानि को काफी हद तक कम किया जा सका है।
Cyclone Warning Systems and Preparedness in Hindi
साइक्लोन की चेतावनी देने और उससे निपटने के लिए सरकार के पास कई आधुनिक तकनीक और तैयारियाँ होती हैं। Indian Meteorological Department (IMD) देश का प्रमुख मौसम विज्ञान विभाग है जो उपग्रह (Satellite), रडार (Radar), और कंप्यूटर आधारित मॉडल्स की सहायता से साइक्लोन की गति, दिशा और तीव्रता की भविष्यवाणी करता है।
- IMD द्वारा 72 घंटे पहले साइक्लोन की चेतावनी दी जाती है जिससे समय रहते सुरक्षा व्यवस्था की जा सके।
- District Disaster Management Authority (DDMA) और राज्य सरकारें राहत व बचाव दल तैयार रखती हैं।
- लोगों को SMS, TV, Radio, और Mobile Apps के माध्यम से चेतावनी दी जाती है।
- Coastal Warning Dissemination System (CWDS) के माध्यम से मछुआरों और तटीय लोगों को जानकारी दी जाती है।
- School level drills, mock exercises और community awareness programs भी लगातार आयोजित किए जाते हैं।
इसके अलावा National Disaster Response Force (NDRF) को High Alert पर रखा जाता है। इनकी टीमें बचाव कार्य में प्रशिक्षित होती हैं और साइक्लोन आने से पहले ही प्रभावित क्षेत्रों में तैनात कर दी जाती हैं।
Cyclone Damage Control and Relief Measures in Hindi
जब साइक्लोन आता है तो वो मकानों, पेड़ों, बिजली के खंभों, संचार व्यवस्था, फसलें और जीवन को भी प्रभावित करता है। इसलिए साइक्लोन के बाद damage control और राहत कार्य (Relief Measures) बहुत ज़रूरी होते हैं। सरकार और NGO मिलकर यह कार्य करते हैं।
- सबसे पहले प्राथमिक चिकित्सा (First Aid), पानी, भोजन और शरण की व्यवस्था की जाती है।
- पानी की टंकियों और Borewell की सफाई की जाती है ताकि बीमारी न फैले।
- बिजली और सड़क व्यवस्था को तुरंत बहाल करने के लिए प्रशासनिक टीम कार्य करती है।
- फसलों की हानि पर मुआवज़ा, मकानों के पुनर्निर्माण के लिए राहत पैकेज दिए जाते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य और काउंसलिंग की सुविधा भी दी जाती है ताकि पीड़ित लोग सामान्य जीवन में लौट सकें।
साथ ही cyclone shelters बनाए जाते हैं जहाँ लोग सुरक्षित रह सकें। इन shelters को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि ये तेज़ हवाओं और बारिश को सह सकें। स्कूलों और पंचायत भवनों को अस्थायी shelter के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
इस पूरे प्रक्रिया में पंचायती राज संस्थाएँ, स्वयंसेवी संगठन, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग और आपदा प्रबंधन विभाग मिलकर काम करते हैं ताकि पीड़ितों को जल्द से जल्द राहत मिल सके।