What is PPP model in governance in Hindi
Makhanlal Chaturvedi University / BCA / Information Technology Trends
PPP Model in Governance Guide in Hindi
PPP Model in Governance Guide in Hindi
क्या आपने कभी सोचा है कि बड़े-बड़े infrastructure प्रोजेक्ट—जैसे हाइवे, एयरपोर्ट या स्मार्ट सिटी—इतनी तेज़ी से कैसे बन जाते हैं? सरकार अकेले यह सब नहीं कर पाती; यहाँ Public‑Private Partnership (PPP) मॉडल काम आता है। इस गाइड में हम PPP मॉडल को एक शिक्षक की तरह बेहद सरल हिंदी भाषा में समझेंगे। आप जानेंगे कि यह मॉडल क्या है, इसके अलग‑अलग प्रकार, फायदे‑जोखिम, तथा भारत के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण। पूरा लेख beginner‑friendly है, इसलिए यदि आप पहली बार पढ़ रहे हैं, तो भी हर कॉन्सेप्ट आसानी से समझ आ जाएगा।
What is PPP model in governance in Hindi
PPP यानी Public‑Private Partnership वह व्यवस्था है जिसमें सरकार (Public Sector) और निजी कंपनी (Private Sector) मिलकर किसी public service या infrastructure project को वित्त, निर्माण, संचालन या रख‑रखाव करते हैं।
इसका मुख्य उद्देश्य सरकार की संसाधन‑सीमाओं को निजी निवेश और विशेषज्ञता से पूरा करना है। सरकार जमीन, कानूनी स्वीकृतियाँ और लंबी अवधि का विज़न देती है, जबकि प्राइवेट कंपनी capital, technology और efficiency लाती है। बदले में निजी कंपनी को तय समय तक उत्पादन से revenue (उदाहरण: टोल, सेवा‑शुल्क, वायबिलिटी गैप अनुदान इत्यादि) अर्जित करने का अधिकार मिलता है।
PPP अनुबंध अक्सर 15 से 35 साल तक के लिए होते हैं, ताकि निवेश लागत वसूल हो सके और जनता को गुणवत्ता‑भरी सेवा निरंतर मिले। इस व्यवस्था से सरकार की प्रारंभिक वित्तीय दबाव कम होता है, प्रोजेक्ट जल्दी पूरा होता है, और risk sharing अधिक संतुलित हो जाता है।
Types of PPP model used in public services in Hindi
PPP स्ट्रक्चर कई प्रकार के होते हैं, जो risk allocation, ownership और revenue mechanism के आधार पर अलग‑अलग होते हैं। नीचे सारिणी में प्रमुख मॉडल, उनकी मुख्य विशेषताएँ और उपयोग‑क्षेत्र प्रस्तुत हैं:
| PPP Type (English) | हिंदी में समझ | मालिकाना हक का स्वरूप | राजस्व का स्रोत | भारत में प्रचलित क्षेत्र |
|---|---|---|---|---|
| Build‑Operate‑Transfer (BOT) | निजी कंपनी बनाती, चलाती और तय समय बाद सरकार को सुपुर्द करती है। | निर्माण व संचालन अवधि में निजी, फिर सरकारी | टोल, सेवा‑शुल्क | हाइवे, ब्रिज, रोड टनेल |
| Design‑Build‑Finance‑Operate (DBFO) | डिज़ाइन से लेकर संचालन तक सभी जिम्मेदारी निजी पक्ष की। | कॉन्ट्रैक्ट अवधि में निजी | लंबी अवधि का टोल या annuity | एक्सप्रेसवे, metro rail |
| Build‑Own‑Operate (BOO) | कंपनी संपत्ति की मालिक ही रहती है, सरकार केवल रेग्युलेटर है। | पूर्ण निजी | सीधा सेवा‑शुल्क | पावर प्लांट, ट्रांसमिशन लाइन |
| Lease‑Develop‑Operate (LDO) | सरकारी परिसंपत्ति को किराए पर लेकर निजी कंपनी अपग्रेड व संचालित करती है। | जमीन सरकारी, संचालन निजी | लीज फीस + उपयोग शुल्क | एयरपोर्ट, पोर्ट |
| Build‑Operate‑Lease‑Transfer (BOLT) | निर्माण व संचालन बाद संपत्ति को लीज पर सरकार को देकर अंततः ट्रांसफर। | समय आधारित मिश्रित | लीज किराया | शैक्षणिक भवन, हॉस्पिटल |
| Service Contract | केवल विशिष्ट सेवा (जैसे सफाई) का छोटा अनुबंध। | पूर्ण सरकारी | फिक्स्ड फीस | शहरी स्वच्छता, वॉटर ट्रीटमेंट |
ऊपर बताए गए प्रत्येक मॉडल में financial structuring, risk profile और contract enforcement अलग होता है। सही मॉडल चुनने के लिए परियोजना की लागत, अपेक्षित cash flow और सामाजिक महत्त्व को ध्यान में रखना चाहिए।
Advantages and risks of PPP model in Hindi
नीचे PPP मॉडल के प्रमुख लाभ और जोखिम विस्तृत रूप से दिए गए हैं:
➤ Advantages (लाभ)
- सरकारी बजट दबाव कम: प्रारंभिक पूँजी व्यवस्था निजी क्षेत्र से आती है, जिससे fiscal deficit नियंत्रित रहता है।
- तेज़ परियोजना पूरा‑होनाः निजी कंपनियाँ time‑bound milestones पर फोकस करती हैं, इसलिए निर्माण में देरी कम होती है।
- तकनीकी विशेषज्ञता और innovation: प्राइवेट कंपनियाँ नई तकनीक, बेहतर प्रबंधन‑प्रणाली व लागत‑कंट्रोल लाती हैं।
- बेहतर सेवा‑गुणवत्ता: अनुबंधों में performance indicators तय होते हैं, जिनके आधार पर भुगतान या penalty होती है। इससे सेवा की गुणवत्ता ऊँची रहती है।
- जोखिम साझाकरण: निर्माण, वित्त, संचालन—सबका जोखिम उचित पक्ष के पास बाँटा जाता है, जिससे प्रोजेक्ट की कुल risk exposure घटती है।
➤ Risks (जोखिम)
- लंबी कानूनी प्रक्रिया: अनुबंध ड्राफ्टिंग, भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय स्वीकृति में देरी से लागत बढ़ सकती है।
- मांग‑जोखिम (Demand Risk): वास्तविक उपयोग अनुमान से कम हुआ तो राजस्व घट जाएगा, और परियोजना financial stress में आ सकती है।
- टैरिफ संवेदनशीलता: यदि टोल या शुल्क अधिक हुआ तो जनता विरोध कर सकती है; कम हुआ तो निजी निवेशक को रिटर्न कम मिलेगा।
- अनुबंधिक विवाद: लंबे समय तक चलने वाले प्रोजेक्ट में change in scope या नीति परिवर्तन से सरकारी‑निजी विवाद उत्पन्न होने की आशंका रहती है।
- मोरल हैज़र्ड: यदि जोखिम पूरी तरह सरकार उठा रही हो, तो निजी पक्ष लागत‑कंट्रोल में ढील दे सकता है।
Examples of PPP model in India in Hindi
भारत ने पिछले दो दशकों में कई सफल PPP परियोजनाएँ लागू की हैं। यहाँ कुछ उल्लेखनीय उदाहरण विस्तृत जानकारी के साथ प्रस्तुत हैं:
-
Delhi International Airport (GMR Group) – BOT मॉडल:
निजी भागीदार ने निर्माण का खर्च वहन किया, modern terminal बनाया, और निर्धारित अवधि तक यात्री शुल्क व commercial revenue संकलित कर रहा है। इससे भारत को विश्व‑स्तरीय aviation hub मिला। -
Hyderabad Metro Rail (L&T) – DBFOT मॉडल:
72 किमी का metro network पूरी तरह निजी निवेश से बना, राज्य सरकार ने भूमि और कुछ वायबिलिटी गैप अनुदान दिया। यात्री किराया व रियल एस्टेट आय से लागत वसूली हो रही है। -
Kishangarh‑Udaipur‑Ahmedabad Expressway – Hybrid Annuity Model:
निर्माण लागत का 40 % सरकार ने, 60 % निजी कंपनी ने निवेश किया। कंपनी तय annuity भुगतान से राजस्व पाती है; टोल संग्रह सरकार करती है। यह मॉडल risk balance के लिए लोकप्रिय हुआ है। -
Kamarajar Port (Ennore) Coal Terminal – BOOT मॉडल:
पोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर को निजी ऑपरेटर ने 30 साल के लिए बनाया‑चलाया; कोयला हैंडलिंग शुल्क से निवेश वसूली की जा रही है। मॉड्यूलर विस्तार की सुविधा भी अनुबंध में शामिल है। -
National Highway Development Project (NHDP) – Multiple BOT Toll & BOT Annuity:
गोल्डन क्वाड्रीलैटर व पोर्ट कनेक्टिविटी मार्गों पर सैकड़ों किलोमीटर सड़क निजी निवेश से बने। टोल रिवेन्यू के अलावा कुछ परियोजनाओं में annuity support भी दिया गया, जिससे लंबी दूरी के हाइवे जल्दी तैयार हुए। -
Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission (JNNURM) Urban Buses – Special Purpose Vehicle (SPV):
कई शहरों (जैसे अहमदाबाद, इंदौर) में बस सेवा हेतु नगर निगम व निजी ऑपरेटर ने संयुक्त SPV बनाया। ऑपरेटर bus fleet खरीदता है, जबकि सरकार viability support व चालू सब्सिडी देती है। परिणामस्वरूप यात्रियों को वातानुकूलित व समयबद्ध बस सेवा मिली।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि PPP मॉडल ने भारत के transport, aviation, power, urban infrastructure जैसे क्षेत्रों में तेज़ प्रगति को संभव बनाया है। सही मॉडल चुनना, जोखिम का न्यायपूर्ण वितरण और समय‑पालन प्रारंभिक सफलता की कुंजी है।