Network Layer: Introduction and Role of Network Layer in Hindi
Makhanlal Chaturvedi University / BCA / Computer Networks
Network Layer: Complete Guide in Hindi
Network Layer: Introduction and Role of Network Layer in Hindi
नेटवर्क लेयर (Network Layer) कंप्यूटर नेटवर्किंग की एक बहुत ही महत्वपूर्ण लेयर है, जो OSI मॉडल के तीसरे लेवल पर स्थित होती है। इस लेयर का मुख्य काम डेटा पैकेट्स को स्रोत (source) से गंतव्य (destination) तक सही रास्ता (path) चुनकर भेजना होता है। इसे हम नेटवर्क की 'गाइड' या 'डायरेक्टर' भी कह सकते हैं, जो यह सुनिश्चित करता है कि डेटा सही जगह पहुंचे।
जब हम इंटरनेट या किसी भी नेटवर्क में कोई डेटा भेजते हैं, तो वह सीधे अगले कंप्यूटर तक नहीं जाता। इसके पीछे कई नेटवर्क्स हो सकते हैं, और नेटवर्क लेयर यह तय करती है कि डेटा को किस- किस रास्ते से गुजरना चाहिए। इस प्रक्रिया को Routing कहा जाता है।
नेटवर्क लेयर का काम केवल डेटा को पैकेट्स में तोड़ना ही नहीं है, बल्कि इन पैकेट्स को उनके logical addresses (जैसे IP address) के आधार पर भेजना भी है। इसलिए, नेटवर्क लेयर logical addressing के लिए जिम्मेदार होती है।
इस लेयर का एक और बड़ा रोल यह है कि यह अलग-अलग नेटवर्क्स को जोड़ती है। मतलब अगर आपका डेटा एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में जाना हो तो नेटवर्क लेयर उस ट्रांजिशन का ध्यान रखती है। इसे हम नेटवर्किंग का पुल (bridge) भी समझ सकते हैं।
Network Layer Functions: Key Tasks in Network Communication in Hindi
नेटवर्क लेयर के कई महत्वपूर्ण कार्य (functions) होते हैं, जो नेटवर्क कम्युनिकेशन को सफल बनाने के लिए आवश्यक हैं। आइए विस्तार से समझते हैं:
1. Logical Addressing (लॉजिकल एड्रेसिंग)
- नेटवर्क लेयर प्रत्येक डिवाइस को एक unique logical address देती है, जो IP address के रूप में जाना जाता है।
- यह एड्रेसिंग डेटा के सही स्रोत और गंतव्य की पहचान करती है।
- यह physical address से अलग होती है, जो नेटवर्क के भीतर हार्डवेयर लेवल पर काम करती है।
2. Routing (रूटिंग)
- रूटिंग का मतलब होता है पैकेट्स के लिए सबसे उपयुक्त रास्ता चुनना ताकि डेटा जल्दी और सही जगह पहुंचे।
- नेटवर्क लेयर में राउटर्स यह काम करते हैं, जो नेटवर्क के भीतर और विभिन्न नेटवर्क्स के बीच डेटा का मार्ग निर्धारण करते हैं।
- रूटिंग एल्गोरिदम्स (जैसे Distance Vector, Link State) इसका आधार होते हैं।
3. Packet Forwarding (पैकेट फॉरवर्डिंग)
- नेटवर्क लेयर यह सुनिश्चित करता है कि एक बार रास्ता चुन लेने के बाद डेटा पैकेट अगले नेटवर्क डिवाइस (जैसे राउटर) को भेजे जाएं।
- यह काम पैकेट को नेटवर्क के विभिन्न नोड्स पर से गुज़रने में मदद करता है।
4. Fragmentation and Reassembly (फ्रैगमेंटेशन और रीअसेंबली)
- जब डेटा पैकेट बहुत बड़ा होता है तो नेटवर्क लेयर उसे छोटे-छोटे हिस्सों (fragments) में तोड़ देती है।
- फिर जब ये फ्रैगमेंट गंतव्य पर पहुंचते हैं, तो उन्हें पुनः जोड़ा (reassemble) जाता है।
- यह प्रक्रिया नेटवर्क की सीमाओं और मिडिया की कैपेसिटी के हिसाब से जरूरी होती है।
5. Error Handling and Diagnostics (एरर हैंडलिंग और डायग्नोस्टिक्स)
- नेटवर्क लेयर नेटवर्क में होने वाली त्रुटियों (errors) को पहचानने और सुधारने की कोशिश करता है।
- जैसे अगर पैकेट गुम हो जाए या डिलीवर न हो, तो नेटवर्क लेयर इसकी जानकारी नेटवर्क डिवाइस को देती है।
- इसके लिए ICMP (Internet Control Message Protocol) जैसे प्रोटोकॉल का उपयोग किया जाता है।
Network Layer Services: Logical Addressing and Routing in Hindi
नेटवर्क लेयर विभिन्न प्रकार की सेवाएं (services) प्रदान करता है, जो नेटवर्क कम्युनिकेशन को सुचारू बनाती हैं। इनमें सबसे मुख्य दो सेवाएं हैं – Logical Addressing और Routing।
Logical Addressing (लॉजिकल एड्रेसिंग)
जैसे हर घर का अपना पता होता है, वैसे ही नेटवर्क में हर डिवाइस का एक unique logical address होता है। यह एड्रेस IP address के रूप में होता है, जो नेटवर्क लेयर द्वारा निर्धारित और प्रबंधित किया जाता है।
- Logical addressing से पैकेट को सही डिवाइस तक पहुँचाने में मदद मिलती है।
- यह physical address से अलग होता है, क्योंकि physical address हार्डवेयर लेवल पर काम करता है, जबकि logical address नेटवर्क के बड़े स्तर पर।
- IP addressing दो प्रकार की होती है – IPv4 और IPv6। IPv4 में 32-bit एड्रेस होते हैं जबकि IPv6 में 128-bit एड्रेस।
Routing (रूटिंग)
रूटिंग नेटवर्क लेयर की एक सबसे महत्वपूर्ण सेवा है। इसके बिना, नेटवर्क में डेटा पैकेट्स को सही जगह पहुंचाना असंभव होता।
- रूटिंग का काम है डेटा को सबसे सही, तेज और भरोसेमंद रास्ते से भेजना।
- राउटर्स इस काम को करते हैं, जो नेटवर्क के भीतर और नेटवर्क्स के बीच पैकेट्स को फॉरवर्ड करते हैं।
- रूटिंग एल्गोरिदम्स जैसे RIP, OSPF और BGP अलग-अलग नेटवर्क स्थितियों के अनुसार सबसे अच्छा मार्ग खोजते हैं।
नेटवर्क लेयर यह सुनिश्चित करता है कि चाहे नेटवर्क का आकार छोटा हो या बड़ा, डेटा आसानी से और सुरक्षित रूप से गंतव्य तक पहुंचे।
Network Layer Protocols: Common Protocols Used in Network Layer in Hindi
नेटवर्क लेयर में कई प्रोटोकॉल्स (protocols) काम करते हैं, जो नेटवर्क कम्युनिकेशन को प्रभावी और सुरक्षित बनाते हैं। इनमें से कुछ प्रोटोकॉल्स बहुत सामान्य और महत्वपूर्ण हैं।
1. Internet Protocol (IP)
- IP नेटवर्क लेयर का सबसे महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल है। यह डिवाइसों को logical address (IP address) देता है और डेटा पैकेट्स के routing का कार्य करता है।
- IP के दो मुख्य संस्करण हैं – IPv4 और IPv6। IPv4 32-bit एड्रेसिंग करता है जबकि IPv6 128-bit एड्रेसिंग।
2. Internet Control Message Protocol (ICMP)
- ICMP नेटवर्क में error reporting और diagnostic के लिए उपयोग किया जाता है।
- जब कोई पैकेट गुम हो जाता है या डिलीवर नहीं हो पाता, तो ICMP नेटवर्क डिवाइस को इसके बारे में सूचित करता है।
- Ping और Traceroute जैसे टूल्स ICMP पर आधारित होते हैं।
3. Address Resolution Protocol (ARP)
- ARP का काम IP address को physical MAC address में बदलना होता है।
- जब नेटवर्क लेयर को पता चलता है कि पैकेट किस IP एड्रेस पर जाना है, तो ARP उस IP का hardware address पता करता है।
4. Routing Protocols
- Routing protocols जैसे RIP (Routing Information Protocol), OSPF (Open Shortest Path First), और BGP (Border Gateway Protocol) नेटवर्क के अंदर और बाहर सबसे बेहतर रास्ता खोजते हैं।
- ये प्रोटोकॉल नेटवर्क में changes के हिसाब से रूटिंग टेबल को अपडेट करते रहते हैं।
नेटवर्क लेयर के ये प्रोटोकॉल मिलकर सुनिश्चित करते हैं कि नेटवर्क का डेटा ट्रांसफर सुचारू, तेज़ और सुरक्षित रहे।