Circuit Switching: Definition and Working in Hindi
Makhanlal Chaturvedi University / BCA / Computer Networks
Circuit Switching: Definition and Working in Hindi
Circuit Switching: Definition and Working in Hindi
सर्किट स्विचिंग (Circuit Switching) एक ऐसा नेटवर्किंग तरीका है जिसमें दो devices या users के बीच communication के लिए एक dedicated physical path (सर्किट) बनाया जाता है। इसका मतलब यह है कि जब दो users आपस में बात करना शुरू करते हैं, तो network में उनके बीच एक dedicated लाइन establish होती है जो पूरे communication session के दौरान बनी रहती है। इस तरह की communication को circuit switching कहा जाता है क्योंकि यह एक circuit बनाकर data transfer करता है।
सर्किट स्विचिंग में, communication के दौरान पूरा data एक fixed path से गुजरता है और जितना भी bandwidth उस path को आवंटित की जाती है, communication के पूरे समय के लिए वह bandwidth reserved रहती है। यह method telephone networks में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है।
सर्किट स्विचिंग का काम करने का तरीका (Working of Circuit Switching)
- Connection Establishment (कनेक्शन स्थापित करना): सबसे पहले communication शुरू करने वाले दोनों devices के बीच एक dedicated path बनाया जाता है। यह path network के intermediate switches के जरिए बनाया जाता है।
- Data Transfer (डेटा ट्रांसफर): एक बार connection established हो जाने के बाद, data दोनों तरफ से उस dedicated path के जरिए भेजा जाता है। इसमें data packets का अलग-अलग रास्ता लेना नहीं होता क्योंकि पूरा path पहले से ही reserved होता है।
- Connection Termination (कनेक्शन खत्म करना): जब communication खत्म हो जाता है, तो dedicated circuit को release कर दिया जाता है ताकि network के अन्य users इसका उपयोग कर सकें।
इस process के दौरान, communication का हर पार्टicipant एक fixed और continuous connection पर होता है, जिससे delay कम होता है और data की delivery smooth होती है। परंतु, अगर कोई user communication न कर रहा हो तब भी path reserved रहता है, जिससे resource utilization कम efficient हो जाता है।
Circuit Setup: Steps of Circuit Switching in Hindi
सर्किट स्विचिंग में dedicated communication path बनाने के कुछ खास चरण होते हैं, जिन्हें हम Circuit Setup Steps कहते हैं। इन steps के जरिए दो users के बीच एक सर्किट बनाकर communication शुरू किया जाता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
1. Call Request (कॉल रिक्वेस्ट भेजना)
जब एक user दूसरे user से बात करना चाहता है, तो वह network को कॉल रिक्वेस्ट भेजता है। यह signal network के switch तक पहुंचता है ताकि connection बनाना शुरू किया जा सके।
2. Path Selection (पाथ का चयन)
नेटवर्क के switch उस कॉल रिक्वेस्ट को प्राप्त कर पथ (path) की खोज करते हैं। यह path source से destination तक जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाता है कि सारे intermediate switches में required resources उपलब्ध हों।
3. Circuit Establishment (सर्किट स्थापित करना)
एक बार suitable path मिल जाने पर, network के सभी intermediate switches के बीच dedicated physical connection स्थापित किया जाता है। यह connection communication के दौरान exclusive रहता है।
4. Data Transfer (डेटा ट्रांसफर)
सर्किट स्थापित होते ही, दोनों users के बीच डेटा send और receive होता है। डेटा लगातार और बिना interruption के उस dedicated path से flow करता है।
5. Connection Release (कनेक्शन रिलीज़ करना)
जब users की बातचीत खत्म हो जाती है, तो वे कॉल समाप्त करते हैं और network को dedicated path को रिलीज करने का signal भेजते हैं। इससे यह resource अन्य users के लिए available हो जाता है।
Circuit Switching Example: Real-life Use Cases in Hindi
अब हम समझते हैं कि circuit switching का उपयोग असल जिंदगी में कहां-कहां होता है और इसके कुछ practical उदाहरण क्या हैं। यह समझना आपके लिए आसान होगा कि यह technology कितनी महत्वपूर्ण है और कब उपयोग की जाती है।
1. Telephone Networks (टेलीफोन नेटवर्क)
सर्किट स्विचिंग का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण पुराना telephone system है। जब आप किसी को फोन कॉल करते हैं, तो आपके और receiver के बीच एक dedicated physical path बन जाता है। पूरी कॉल के दौरान यह path exclusive रहता है, चाहे आप बात कर रहे हों या नहीं। यही वजह है कि कॉल के दौरान आवाज़ में delay बहुत कम होता है और quality अच्छी रहती है।
2. Video Calling (वीडियो कॉलिंग)
कुछ पुराने video calling systems में circuit switching का उपयोग किया जाता था ताकि communication real-time और बिना किसी delay के हो सके। हालांकि, आधुनिक वीडियो कॉलिंग अब packet switching पर ज्यादा निर्भर है, पर पुराने नेटवर्क में circuit switching की अहमियत थी।
3. Private Network Connections (प्राइवेट नेटवर्क कनेक्शन)
कुछ organizations अपनी private communication के लिए circuit switching networks का उपयोग करती हैं, जहाँ dedicated lines बनाए जाते हैं ताकि communication private और secure रहे। उदाहरण के लिए, बैंकिंग ट्रांजेक्शन या military communication।
Circuit Switching Limitations in Hindi
हर तकनीक की तरह, circuit switching के भी कुछ limitations हैं जो इसे हर तरह की communication के लिए उपयुक्त नहीं बनाते। ये limitations समझना जरूरी है ताकि आप जान सकें कि circuit switching कब उपयोगी है और कब packet switching जैसी अन्य तकनीक बेहतर होती है।
1. Inefficient Resource Utilization (अप्रभावी संसाधन उपयोग)
जब एक dedicated circuit किसी दो users के बीच established होता है, तो communication के पूरे समय के लिए वह circuit reserved रहता है। मतलब अगर users बात न कर रहे हों, तब भी bandwidth और resources block रहते हैं। इससे network की क्षमता का सही उपयोग नहीं होता।
2. Setup Time Delay (सर्किट स्थापित करने में समय लगना)
किसी communication के लिए dedicated circuit बनाना समय लेता है। जब कॉल शुरू होती है तो पहले connection setup करना पड़ता है, जिससे थोड़ा delay हो सकता है। यह delay packet switching के मुकाबले ज्यादा होता है।
3. Scalability की समस्या (Scalability Issue)
जैसे-जैसे नेटवर्क में users की संख्या बढ़ती है, हर user के लिए dedicated circuit बनाना मुश्किल और महंगा हो जाता है। बड़े नेटवर्क के लिए circuit switching कम practical हो जाता है क्योंकि resources जल्दी खत्म हो सकते हैं।
4. Fault Tolerance की कमी (कम Fault Tolerance)
अगर circuit के बीच किसी भी जगह पर physical link fail हो जाए, तो communication पूरी तरह से बाधित हो जाता है। इसे ठीक करने के लिए पूरा circuit फिर से बनाना पड़ता है, जो time-consuming होता है।
5. High Cost (उच्च लागत)
Dedicated physical connections के कारण circuit switching नेटवर्क की setup और maintenance की लागत अधिक होती है। खासकर जब network बहुत बड़ा हो तो ये खर्च और भी बढ़ जाता है।
टैबल: Circuit Switching के फायदे और नुकसान
| फायदे (Advantages) | नुकसान (Limitations) |
|---|---|
| Real-time communication के लिए बेहतर suited है। | Resources inefficient तरीके से उपयोग होते हैं। |
| Delay बहुत कम होता है, voice calls के लिए उपयुक्त। | Connection setup में delay होता है। |
| Dedicated path से data transmission होता है, इसलिए डेटा secure रहता है। | बड़े नेटवर्क में scalability की समस्या होती है। |
| Simple और predictable communication pattern होता है। | Fault tolerance कम होती है, link failure पर communication रुक जाता है। |
| Continuous bandwidth allocation होती है, जिससे quality बेहतर रहती है। | Setup और maintenance की लागत ज्यादा होती है। |