Non-Discounting Methods in Capital Budgeting in Hindi
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Non-Discounting Methods in Capital Budgeting in Hindi
कैपिटल बजटिंग में Non-Discounting Methods उन तरीकों को दर्शाते हैं जिनमें प्रोजेक्ट की कैश फ्लो वैल्यू को डिस्काउंट नहीं किया जाता। ये तरीके सरल होते हैं और छोटे या कम जटिल प्रोजेक्ट्स के लिए काफी उपयोगी साबित होते हैं। हालांकि, इनमें समय के मूल्य (Time Value of Money) को नजरअंदाज किया जाता है, जिससे यह सीमित हो सकते हैं। आइए इन तरीकों को विस्तार से समझते हैं।
Table of Contents
- Types of Non-Discounting Methods in Capital Budgeting in Hindi
- Steps for Calculating Payback Period in Hindi
- Steps for Calculating Accounting Rate of Return (ARR) in Hindi
- Advantages and Disadvantages of Non-Discounting Methods in Hindi
- Limitations of Non-Discounting Methods in Capital Budgeting in Hindi
Non-Discounting Methods in Capital Budgeting in Hindi
जब हम किसी बिज़नेस के लिए लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट की प्लानिंग करते हैं, तो हमें यह देखना होता है कि कौन-सा प्रोजेक्ट फायदेमंद रहेगा और कौन-सा नहीं। यही प्रोसेस Capital Budgeting कहलाती है। Capital Budgeting के कई तरीके होते हैं, जिनमें से एक है Non-Discounting Methods ।
Non-Discounting Methods में हम प्रोजेक्ट के कैश फ्लो (Cash Flow) को उसके समय के मूल्य (Time Value of Money) को ध्यान में रखे बिना एनालाइज करते हैं। यानी, यह नहीं देखते कि भविष्य में मिलने वाले पैसे का आज के समय में क्या मूल्य होगा। ये तरीके सरल होते हैं और छोटे बिज़नेस के लिए उपयोगी साबित होते हैं।
Non-Discounting Methods क्या होते हैं?
Non-Discounting Methods वे तरीके होते हैं जिनमें फ्यूचर कैश फ्लो को डिस्काउंट नहीं किया जाता , बल्कि उन्हें उनकी फेस वैल्यू (Face Value) पर ही लिया जाता है। इस प्रक्रिया में हम प्रोजेक्ट से होने वाली संभावित इनकम को सीधे एनालाइज करते हैं और यह तय करते हैं कि वह इन्वेस्टमेंट के लायक है या नहीं।
हालांकि, इन तरीकों में Time Value of Money को इग्नोर किया जाता है, इसलिए इनका इस्तेमाल छोटे और जल्दी लाभ देने वाले प्रोजेक्ट्स के लिए किया जाता है।
Non-Discounting Methods के मुख्य प्रकार
- Payback Period Method – यह तरीका बताता है कि कोई इन्वेस्टमेंट कितने समय में अपनी लागत (Cost) रिकवर कर लेगा।
- Accounting Rate of Return (ARR) Method – इस तरीके में प्रोजेक्ट से होने वाले औसत लाभ (Average Profit) को उसकी लागत से तुलना करके एनालाइज किया जाता है।
Non-Discounting Methods की विशेषताएँ
- सरल और आसान – यह तरीके समझने और इस्तेमाल करने में बेहद सरल होते हैं।
- छोटे बिज़नेस के लिए उपयुक्त – छोटे बिज़नेस और स्टार्टअप्स के लिए ये तरीके अधिक उपयुक्त होते हैं।
- Time Value of Money को इग्नोर करते हैं – इन तरीकों में पैसे के समय के मूल्य (Time Value of Money) को नहीं देखा जाता।
Non-Discounting Methods का उपयोग कब करें?
जब कोई प्रोजेक्ट कम समय में पूरा हो और उसका फाइनेंशियल रिस्क कम हो, तो Non-Discounting Methods उपयोगी साबित हो सकते हैं। यदि किसी बिज़नेस को तुरंत ROI (Return on Investment) की जरूरत हो , तो Payback Period Method काफी फायदेमंद हो सकता है।
हालांकि, यदि कोई प्रोजेक्ट लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए है, तो इन तरीकों का इस्तेमाल करना उचित नहीं रहेगा क्योंकि ये Time Value of Money को ध्यान में नहीं रखते।
Types of Non-Discounting Methods in Capital Budgeting in Hindi
जब हम किसी प्रोजेक्ट में इन्वेस्टमेंट करने का निर्णय लेते हैं, तो हमें यह देखना होता है कि वह इन्वेस्टमेंट लाभदायक (Profitable) होगा या नहीं । इसके लिए Capital Budgeting Methods का उपयोग किया जाता है। इन तरीकों को दो मुख्य भागों में बांटा जाता है: Discounting Methods और Non-Discounting Methods ।
Non-Discounting Methods वे तरीके होते हैं जिनमें Time Value of Money को ध्यान में नहीं रखा जाता, यानी हम भविष्य में मिलने वाले पैसे का आज की तारीख में क्या मूल्य होगा, इसकी गणना नहीं करते। इन तरीकों का उपयोग छोटे प्रोजेक्ट्स और जल्दी निर्णय लेने के लिए किया जाता है।
1. Payback Period Method
Payback Period एक ऐसा तरीका है जिससे हम यह पता लगाते हैं कि कोई इन्वेस्टमेंट कितने समय में अपनी लागत (Cost) को रिकवर कर लेगा । यह तरीका सरल होता है और यह दर्शाता है कि किसी प्रोजेक्ट से रिटर्न (Return) आने में कितना समय लगेगा ।
इसमें कुल इन्वेस्टमेंट को हर साल मिलने वाले कैश इनफ्लो (Cash Inflow) से डिवाइड किया जाता है। यह जितना कम होता है, उतना ही बेहतर माना जाता है, क्योंकि इसका मतलब है कि इन्वेस्टमेंट की रिकवरी जल्दी हो रही है।
Payback Period निकालने का फॉर्मूला:
Payback Period = Initial Investment / Annual Cash Inflow
यदि प्रोजेक्ट में हर साल कैश फ्लो अलग-अलग होता है, तो हमें उसे जोड़कर देखना पड़ता है कि कब कुल इन्वेस्टमेंट की भरपाई हो जाती है ।
2. Accounting Rate of Return (ARR) Method
ARR (Accounting Rate of Return) एक ऐसा तरीका है जिससे हम यह एनालाइज करते हैं कि कोई प्रोजेक्ट औसतन कितनी रिटर्न देगा । इसमें नेट इनकम (Net Income) को इन्वेस्टमेंट से कंपेयर किया जाता है , जिससे हमें एक परसेंटेज में रिटर्न मिलता है।
यह तरीका मुख्य रूप से अकाउंटिंग प्रोफिट (Accounting Profit) पर आधारित होता है , न कि कैश फ्लो पर। इसलिए, यह छोटे बिज़नेस और स्टार्टअप्स के लिए उपयोगी हो सकता है, जहां भविष्य के कैश फ्लो की सटीक गणना मुश्किल होती है।
ARR निकालने का फॉर्मूला:
ARR = (Average Annual Accounting Profit / Initial Investment) × 100
अगर ARR प्रतिशत अधिक होता है, तो इसका मतलब है कि प्रोजेक्ट लाभदायक (Profitable) है । यदि यह कम होता है, तो हमें दूसरे इन्वेस्टमेंट ऑप्शन पर विचार करना चाहिए।
3. Average Rate of Return Method
Average Rate of Return (ARR) और Accounting Rate of Return लगभग एक ही तरह के होते हैं। इस तरीके में प्रोजेक्ट से होने वाले औसत लाभ को इन्वेस्टमेंट की औसत लागत से डिवाइड किया जाता है ।
ARR के समान ही, यह तरीका भी अकाउंटिंग डेटा पर आधारित होता है और इसमें कैश फ्लो की जगह नेट प्रॉफिट को प्राथमिकता दी जाती है । हालांकि, यह तरीका Time Value of Money को नजरअंदाज करता है, इसलिए यह लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए अधिक उपयुक्त नहीं माना जाता।
Non-Discounting Methods में कौन-सा तरीका सबसे बेहतर है?
यह पूरी तरह से बिज़नेस की जरूरतों और प्रोजेक्ट की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि हमें यह देखना हो कि इन्वेस्टमेंट कितने समय में रिकवर होगा , तो Payback Period Method सबसे अच्छा विकल्प है।
लेकिन, यदि हमें किसी प्रोजेक्ट की औसत रिटर्न दर (Return Rate) निकालनी हो , तो ARR Method अधिक उपयोगी हो सकता है। इन दोनों तरीकों में Time Value of Money को नहीं देखा जाता, इसलिए इन्हें छोटे और कम समय में पूरे होने वाले प्रोजेक्ट्स के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है।
Steps for Calculating Payback Period in Hindi
Payback Period वह समय होता है जिसमें किसी प्रोजेक्ट में लगाया गया इन्वेस्टमेंट पूरी तरह से रिकवर हो जाता है। यह कैपिटल बजटिंग (Capital Budgeting) का एक महत्वपूर्ण तरीका है, जिसका उपयोग यह निर्णय लेने के लिए किया जाता है कि कोई प्रोजेक्ट वित्तीय रूप से लाभदायक है या नहीं।
जब कोई बिज़नेस नया इन्वेस्टमेंट करने की योजना बनाता है, तो उसे यह समझने की जरूरत होती है कि लगाई गई पूंजी कितनी जल्दी वापस आएगी । इसलिए, Payback Period निकालना आवश्यक होता है, ताकि यह जाना जा सके कि प्रोजेक्ट में पैसा लगाना सही होगा या नहीं।
Payback Period निकालने की प्रक्रिया
Payback Period की गणना करने के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें मुख्य रूप से कैश इनफ्लो (Cash Inflow) और इनिशियल इन्वेस्टमेंट (Initial Investment) को ध्यान में रखा जाता है। यदि प्रोजेक्ट का कैश इनफ्लो हर साल समान हो, तो इसकी गणना करना आसान होता है। लेकिन, यदि हर साल अलग-अलग कैश इनफ्लो हो, तो इसे स्टेप-बाय-स्टेप कैल्कुलेट किया जाता है।
Payback Period निकालने का फॉर्मूला
Payback Period = Initial Investment / Annual Cash Inflow
जब कैश इनफ्लो हर साल समान होता है, तब हम इस फॉर्मूले का सीधा उपयोग कर सकते हैं। लेकिन, जब कैश इनफ्लो अलग-अलग होता है, तब हमें इसे जोड़कर देखना पड़ता है कि कब कुल इन्वेस्टमेंट की भरपाई हो जाती है।
Step-by-Step प्रक्रिया
Step 1: प्रोजेक्ट की लागत (Initial Investment) को पहचानें
सबसे पहले हमें यह जानना होता है कि प्रोजेक्ट की कुल लागत कितनी होगी। यह वह राशि है जिसे बिज़नेस को प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करना होगा।
Step 2: हर साल होने वाले कैश इनफ्लो (Annual Cash Inflow) को निर्धारित करें
प्रोजेक्ट से हर साल कितनी आमदनी होगी, इसे समझना जरूरी होता है। कैश इनफ्लो का मतलब है कि हर साल कितना पैसा बिज़नेस में वापस आएगा।
Step 3: यदि कैश इनफ्लो समान है, तो फॉर्मूला लगाएं
यदि हर साल मिलने वाला कैश इनफ्लो समान होता है, तो ऊपर दिए गए फॉर्मूले का सीधा उपयोग किया जा सकता है।
Step 4: यदि कैश इनफ्लो अलग-अलग है, तो जोड़कर निकालें
यदि प्रोजेक्ट में हर साल अलग-अलग कैश इनफ्लो होता है, तो हमें हर साल की इनकम को जोड़ते जाना होता है, जब तक कि कुल इन्वेस्टमेंट की भरपाई न हो जाए।
उदाहरण (Example)
मान लीजिए, किसी प्रोजेक्ट में ₹50,000 का इन्वेस्टमेंट किया जाता है और हर साल का कैश इनफ्लो ₹10,000 है।
कैलकुलेशन:
Payback Period = ₹50,000 / ₹10,000 = 5 years
इसका मतलब है कि 5 साल में यह इन्वेस्टमेंट पूरी तरह रिकवर हो जाएगा ।
Steps for Calculating Accounting Rate of Return (ARR) in Hindi
Accounting Rate of Return (ARR) कैपिटल बजटिंग (Capital Budgeting) का एक महत्वपूर्ण तरीका है, जो किसी इन्वेस्टमेंट से मिलने वाले संभावित लाभ को दिखाता है। यह तरीका पूरी तरह से एकाउंटिंग प्रॉफिट (Accounting Profit) पर आधारित होता है और इसमें Cash Flows को नहीं, बल्कि Net Income को ध्यान में रखा जाता है ।
यह तरीका खासकर उन बिज़नेस के लिए उपयोगी होता है, जो यह जानना चाहते हैं कि उनका इन्वेस्टमेंट लॉन्ग-टर्म में कितनी कमाई देगा । ARR के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि कोई प्रोजेक्ट फाइनेंशियली लाभदायक (Profitable) है या नहीं।
Accounting Rate of Return (ARR) निकालने का फॉर्मूला
ARR = (Average Annual Accounting Profit / Initial Investment) × 100
यहाँ पर Average Annual Accounting Profit का मतलब है कि हर साल औसतन कितना प्रॉफिट होगा, और Initial Investment वह राशि है, जो शुरुआत में इन्वेस्ट की जाती है। ARR को प्रतिशत (%) में व्यक्त किया जाता है, ताकि इसे आसानी से अन्य इन्वेस्टमेंट्स से तुलना की जा सके।
Step-by-Step प्रक्रिया
Step 1: प्रोजेक्ट की कुल लागत (Initial Investment) को निर्धारित करें
सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि प्रोजेक्ट के लिए कितनी राशि इन्वेस्ट की जा रही है। यह Fixed Assets (Machines, Equipment, Land, आदि) की लागत भी हो सकती है।
Step 2: प्रोजेक्ट से मिलने वाले Net Profit का अनुमान लगाएं
किसी भी इन्वेस्टमेंट से होने वाली कमाई को जानना जरूरी होता है। यहाँ पर हमें Cash Inflows पर ध्यान नहीं देना है, बल्कि Net Profit पर ध्यान देना है । इसमें टैक्स और अन्य खर्चे घटाने के बाद जो राशि बचती है, उसे शामिल किया जाता है।
Step 3: Average Annual Accounting Profit निकालें
अगर कोई प्रोजेक्ट 5 साल के लिए है और हर साल अलग-अलग लाभ देता है, तो सभी वर्षों के लाभ को जोड़कर 5 से भाग कर दिया जाता है। इससे हमें औसत वार्षिक लाभ (Average Annual Accounting Profit) मिल जाता है।
Step 4: फॉर्मूले में इन वैल्यूज़ को लगाएं
अब हमें ऊपर दिए गए ARR Formula में Average Annual Accounting Profit और Initial Investment की वैल्यू डालनी है और इसे 100 से गुणा कर देना है, जिससे हमें ARR प्रतिशत (%) में मिल जाएगा।
उदाहरण (Example)
मान लीजिए, एक कंपनी ने एक प्रोजेक्ट में ₹2,00,000 का इन्वेस्टमेंट किया है। अगले 5 वर्षों में मिलने वाले लाभ इस प्रकार हैं:
Year | Net Profit (₹) |
---|---|
Year 1 | 40,000 |
Year 2 | 50,000 |
Year 3 | 45,000 |
Year 4 | 55,000 |
Year 5 | 50,000 |
Step 1: Average Annual Accounting Profit निकालें
कुल प्रॉफिट = 40,000 + 50,000 + 45,000 + 55,000 + 50,000 = ₹2,40,000
Average Annual Accounting Profit = ₹2,40,000 / 5 = ₹48,000
Step 2: ARR निकालें
ARR = (₹48,000 / ₹2,00,000) × 100
ARR = 24%
इसका मतलब है कि इस प्रोजेक्ट से हमें हर साल औसतन 24% का रिटर्न मिलेगा।
ARR के फायदे और सीमाएँ
ARR के फायदे:
- यह आसान और सरल तरीका है, जिससे हम किसी भी प्रोजेक्ट की लाभप्रदता का आकलन कर सकते हैं।
- ARR का प्रतिशत रूप में परिणाम मिलता है , जिससे विभिन्न प्रोजेक्ट्स की तुलना करना आसान हो जाता है।
- इसमें Net Profit को ध्यान में रखा जाता है , जो बिज़नेस के लिए महत्वपूर्ण होता है।
ARR की सीमाएँ:
- इसमें Cash Flows को अनदेखा किया जाता है , जबकि असली इन्वेस्टमेंट डिसीजन के लिए Cash Flows अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।
- यह Time Value of Money को नहीं दर्शाता, जिससे लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट्स का सही आकलन नहीं हो पाता।
- ARR Risk और Uncertainty को ध्यान में नहीं रखता , जिससे यह सभी परिस्थितियों में सही परिणाम नहीं दे सकता।
Advantages and Disadvantages of Non-Discounting Methods in Hindi
Non-Discounting Methods कैपिटल बजटिंग (Capital Budgeting) के वे तरीके होते हैं, जिनमें Time Value of Money को ध्यान में नहीं रखा जाता। ये तरीके निवेश (Investment) की लाभप्रदता को आसान और तेज़ तरीके से मापने में मदद करते हैं।
यह तरीका छोटे और मध्यम स्तर के बिज़नेस के लिए फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें कैलकुलेशन सरल और जल्दी होने वाले होते हैं। हालांकि, इसमें कुछ सीमाएँ भी होती हैं, जिनकी वजह से बड़े प्रोजेक्ट्स में इनका इस्तेमाल सीमित होता है।
Advantages of Non-Discounting Methods
1. Calculation करना आसान होता है
Non-Discounting Methods में कैलकुलेशन बहुत ही आसान होते हैं। इसमें किसी प्रकार की जटिल गणनाओं (Complex Calculations) की जरूरत नहीं होती, जिससे छोटे बिज़नेस के लिए यह तरीका उपयोगी हो जाता है।
2. निर्णय जल्दी लिया जा सकता है
चूंकि यह तरीके सीधे और सरल होते हैं, इसलिए इनके जरिए किसी प्रोजेक्ट की लाभप्रदता को तेज़ी से मापा जा सकता है । यह उन बिज़नेस के लिए फायदेमंद होता है, जहां जल्दी निर्णय लेने की जरूरत होती है।
3. Historical Data पर आधारित होते हैं
ये तरीके पिछले वर्षों के Financial Statements पर आधारित होते हैं, जिससे बिज़नेस के लिए यह समझना आसान हो जाता है कि उनका प्रोजेक्ट अतीत के आधार पर कितना लाभदायक हो सकता है।
4. छोटे और मध्यम व्यवसायों के लिए उपयोगी
जिन बिज़नेस के पास सीमित संसाधन (Limited Resources) होते हैं, वे इन तरीकों का उपयोग करके कैपिटल बजटिंग के फैसले जल्दी और बिना अधिक लागत के ले सकते हैं ।
Disadvantages of Non-Discounting Methods
1. Time Value of Money को अनदेखा करता है
इस तरीके की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह पैसे के समय मूल्य (Time Value of Money - TVM) को नजरअंदाज करता है। इसका मतलब है कि यह यह नहीं देखता कि आज का ₹1 भविष्य में उतना ही मूल्यवान रहेगा या नहीं ।
2. Cash Flow की अनदेखी करता है
Non-Discounting Methods आमतौर पर Net Profit पर आधारित होते हैं और Cash Flow को ध्यान में नहीं रखते। जबकि असल में कैश फ्लो ही किसी भी प्रोजेक्ट की वास्तविक स्थिति को दिखाता है।
3. Long-Term Projects के लिए सही नहीं
चूंकि ये तरीके पैसे के समय मूल्य (TVM) को ध्यान में नहीं रखते, इसलिए लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट (Long-Term Investments) के लिए यह अधिक सटीक परिणाम नहीं दे सकते ।
4. जोखिम (Risk) को नहीं मापते
Non-Discounting Methods किसी भी प्रोजेक्ट से जुड़े जोखिम (Risk) को नहीं मापते। जबकि कैपिटल बजटिंग में यह देखना जरूरी होता है कि प्रोजेक्ट कितना जोखिम भरा है और उसका Future Growth Potential कितना है।
Limitations of Non-Discounting Methods in Capital Budgeting in Hindi
Non-Discounting Methods, जैसे की Payback Period और Accounting Rate of Return (ARR) , कैपिटल बजटिंग (Capital Budgeting) के दौरान निर्णय लेने के आसान तरीके होते हैं। ये तरीकें Time Value of Money को नजरअंदाज करते हैं, जिससे बड़े निवेश के फैसले सही नहीं हो सकते। आइए जानते हैं इन तरीकों की कुछ सीमाएँ (Limitations) क्या हैं।
इस विषय में हम इन विधियों की कमियों को समझेंगे और यह देखेंगे कि क्यों बड़े और लंबे समय के प्रोजेक्ट्स में इनका उपयोग सीमित होता है।
Limitations of Non-Discounting Methods
1. Time Value of Money को अनदेखा करते हैं
Non-Discounting Methods में Time Value of Money (TVM) को नजरअंदाज किया जाता है। इसका मतलब है कि ये तरीके यह नहीं मानते कि आज का पैसा भविष्य में उतना मूल्यवान नहीं रहेगा। यह एक महत्वपूर्ण सीमा है क्योंकि समय के साथ पैसों की कीमत बदलती रहती है।
2. केवल समग्र लाभ पर ध्यान केंद्रित करते हैं
Non-Discounting Methods जैसे Payback Period केवल समग्र लाभ (Total Profit) को ध्यान में रखते हैं, जो कि निवेश की वास्तविक स्थिति का सही आकलन नहीं कर पाता। इन विधियों में Cash Flow और Risk Factor की अनदेखी की जाती है, जो किसी प्रोजेक्ट की सटीकता को प्रभावित करता है।
3. Long-Term Benefits की अनदेखी करते हैं
इन विधियों में केवल कृपया कुछ सालों में वापस होने वाले लाभ (Short-Term Benefits) को देखा जाता है, जबकि लंबी अवधि के लाभ (Long-Term Benefits) पर ध्यान नहीं दिया जाता। इस वजह से ये बड़े और दीर्घकालिक निवेश के लिए उपयुक्त नहीं होते, क्योंकि लंबे समय में प्रोजेक्ट के असली लाभ को नकारा जाता है।
4. Risk Factor को नहीं मापते
Non-Discounting Methods में Risk Factor को मापने का कोई तरीका नहीं होता। किसी प्रोजेक्ट में जोखिम (Risk) होता है, और किसी परियोजना का असफल होना या निश्चित समय में लाभ न होना एक वास्तविक समस्या हो सकती है, लेकिन ये विधियाँ इसे नजरअंदाज कर देती हैं।
5. Cash Flow पर ध्यान नहीं देते
Cash Flow की सही पहचान करना आवश्यक है, क्योंकि किसी भी व्यवसाय के लिए पैसा कितना जल्दी और आसानी से आने वाला है यह महत्वपूर्ण होता है। Non-Discounting Methods में Cash Flow को ध्यान में नहीं रखा जाता, जो किसी प्रोजेक्ट के सफलता की असल मापदंड होता है।
6. Accurate Decision-Making में समस्या
चूंकि Non-Discounting Methods सबसे सटीक वित्तीय गणनाएँ प्रदान नहीं करते, यह निर्णय लेने के समय गलतियों का कारण बन सकता है । इस कारण से निर्णय प्रक्रिया में गलत निवेश (Wrong Investment) होने का जोखिम अधिक होता है।
7. केवल Simple Projects के लिए उपयुक्त
ये विधियाँ सिर्फ छोटे और सरल प्रोजेक्ट्स के लिए उपयुक्त होती हैं, क्योंकि ये प्रोजेक्ट्स कम अवधि और कम जोखिम वाले होते हैं। जैसे-जैसे प्रोजेक्ट्स का आकार बढ़ता है, इन तरीकों की सटीकता और प्रभावशीलता कम होती जाती है ।